T.R. Bhandari'sVaastu Matter in English
Vaastu Matter in Hindi |
दक्षिण-पश्चिम में हों वृक्षप्रश>>: मेरे अव्यवस्थित जीवन तथा प्रथम पुत्र के प्रत्येक कार्य में रुकावटें इत्यादि समस्याओं का समाधान बताएं।उत्तर:इस मकान के खुले स्थान के ईशान में वृक्ष लगे हुए हैं। वृक्षारोपण पर्यावरण का एक अत्यंत आवश्यक अंग है, लेकिन वास्तु विषय में वृक्षों से मिलने वाले शुभ व अशुभ परिणामों पर निर्देश दिए गए हैं कि वृक्ष एवं पौधे कौन सी दिशा में लगाकर, उसके शुभ फलदायक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। ईशान दिशा को सकारात्मक उढर्जा का प्रवेश-द्वार कहा जाता है, क्योंकि भवन में ईशान दिशा से अत्याधिक सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। ईशान में वृक्ष होने से, इन वृक्षों की जड़ें, सूर्य-रश्मियों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को जल्दी अवशोषित कर लेती है, जिसके कारण भवन में स्वास्थ्यप्रद सूर्य-रश्मियों के प्रवाहित होने में रुकावट पैदा होती है। मकान में सूर्य-रश्मियों का प्रवाह अवरुद्ध होने से बीमारियां फैलने का अंदेशा रहता है। ईशान में वृक्ष होने के कारण ईशान दिशा वजनदार हो जाती है, जिससे आर्थिक उन्नति का मार्ग अवरुद्ध होता है। अत: पर्यावरण को सुरक्षित रखने के साथ ही इन पेड-पौधों से शुभ फल प्राप्त करने के लिए दक्षिण एवं पश्चिम में वृक्ष तथा ईशान कोने को छोड़कर पूर्व एवं उत्तर में पौधे लगाने चाहिये। किसी विषय से लाभान्वित होने के लिए, उस विषय को अपनाने से पहले, व्यावहारिक रुप से उस पद्धति का सही आकलन करके उपयोग किया जाए तो ही वह कार्य पद्धति उपयोगी और शुभ फलदायक साबित होगी। शास्त्रों में वर्णित ईशान में पूजा करने का अर्थ सूर्य को अर्ध्य (जल अर्पित) देने से है। सुबह के समय सूर्य को जल अर्पित करते समय, सूर्य-रश्मियों से मानव शरीर को विटामिन “डी“ की प्राप्ति होती है, जो जीवन को स्वास्थ्यवर्धक रखने के लिए अत्यंत आवश्यक होती है। पूजा करने के उद्देश्य से मकान के ईशान में कमरा एवं चबूतरा बनाने के कारण, ईशान दिशा वजनदार हो जाती है, इससे लाभ की अपेक्षा सिर्फ हानि ही होती है। ईशान में स्थित पूजा स्थल पर नित्य दीप प्रज्ज्वलित करने के कारण वहां पर अग्नि पैदा होती है, जबकि वास्तु विषय का यह सिद्धांत सर्व-विदित है कि ईशान में अग्नि का प्रवेश निषेघ है। ईशान की अपेक्षा पश्चिम-वायव्य में पूजा स्थल बना कर आप इससे बेहतर नतीजे प्राप्त कर सकते हैं। अत: ईशान में स्थित पूजा के कमरे को चबुतरे सहित तोड़कर, उचित स्थान पर पूजा स्थल बनाएं। हाल के पूर्व-आग्नेय में स्थित दरवाजे को, हाल के पूर्व-ईशान में स्थानांतरित करे तथा हाल के उत्तर-ईशान में एक नया दरवाजा लगाये। वास्तु परिवर्तन करवाने के बाद आपकी समस्याओं के समाधान का असर, आप स्वयं महसूस करेंगे। |