T.R. Bhandari'sVaastu Matter in English
Vaastu Matter in Hindi |
अपनों से अपनी बातवास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्वों का अत्यधिक महत्व है। यह तत्व, जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में दिशाओं के आधार पर इन पंच-तत्वों का उचित तालमेल और संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वालों का जीवन खुशहाल एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को भू-गर्भीय ऊर्जा, चुंबकीय शक्ति, गुरुत्वाकर्षण बल, सौरमंडल की ऊर्जा, प्राकृतिक ऊर्जा एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यप्रद रश्मियों का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के आचार-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है। जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहती है, साथ ही बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत - यदि भवन का निर्माण कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के आचार-विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्प्रभावी होगी। जिसके कारण मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पंच-तत्वों के उचित तालमेल एवं संतुलन के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है। इन तत्वों का उचित संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वाले प्राणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सके। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि प्रथ्वी पर इन पंच-तत्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आहार-विहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। वास्तु के पंच-तत्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं। संसार की समस्त ऊर्जा शक्तियों को प्रदान करने वाला सूर्य ही है। अत जितना ज्यादा-से-ज्यादा संभव हो सके, मनुष्य को सूर्य की किरणों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा शक्ति एवं रशिमियों को ग्रहण करना चाहिये। क्योंकि इसमें प्राण शक्ति होती है। जिस भवन में सूर्य की किरणें एवं शुद्ध वायु का स्वच्छंद प्रवाह नहीं होगा तो उस भवन में रहने वालों का जीवन अस्वस्थ ही व्यतीत होगा। उत्तर की तरफ मुँह करके भोजन करने पर चुम्बकीय प्रवाह, नसों द्वारा अधिक वेग से प्रवाहित होता है। इसी वजह से उत्तर-मुखी रहकर भोजन करना इतना वायुवर्धक नहीं है, जितना पूर्व की ओर मुंह करके भोजन करना स्वास्थ्यदायक होता है। क्योंकि सूर्य ऊर्जा शक्ति का मुख्य स्त्रोत है। वास्तु विषय में भी भवन तथा मानव शरीर में सूर्य किरणों की ऊर्जा के संचार करने पर विशेष बल दिया गया है। धार्मिक शास्त्रानुसार, सूर्य उपासना में सूर्य को अर्ध्य (जल) देने से आशय यही है कि प्रातकाल मानव शरीर सूर्य-रश्मियाँ ग्रहण कर सके। रसोई घर के सही दिशा में नहीं होने के कारण पूरे परिवार में पाचन संबंधित समस्याएं एवं बीमारियाँ पैदा होती है। इसीलिए आग्नेय में रसोई-घर बनाने को महत्व दिया जाता है। इसके साथ ही दक्षिण-आग्नेय में एक दरवाजा या खिड़की अवश्य ही लगानी चाहिये। पूर्व-आग्नेय दिशा में सूर्य की इंफ्रारेड किरणें गिरती हैं, जो आग्नेय दिशा में पकने वाले खाने में पनपने वाले विषाणुओं को समाप्त कर देती है, और दक्षिण-आग्नेय के दरवाजे या खिड़की से आने वाली ठंडी हवा, इन गरम रश्मियों को रसोई-घर से बाहर निकाल देती है। इसके विपरीत - पूर्व-उत्तर में रसोई घर बनाने में अनावश्यक धन का अपव्यय, परिवार के सदस्यों में आपसी मतभेद एवं मानसिक अशांति मिलती है। मकान में ईशान दिशा का कट जाना वंश-वृद्धि में बाधक एवं जीवन को अत्यंत कष्टप्रद बनाता है। उचित स्थान पर शयन कक्ष बनाने का महत्व इस आशय से है कि वैवाहिक जीवन आनंदित रहे और आदर्श संतान सुख की प्राप्ति हो सके। भवन के चारों तरफ पूर्व एवं उत्तर में अधिक तथा दक्षिण एवं पश्चिम में अपेक्षाकृत कम खुली जगह रखनी चाहिये। पूर्व-उत्तर में ढलान तथा हल्का और दक्षिण-पश्चिम का भाग ऊँचा और वजनदार होना चाहिये। अधिकांश दरवाजे तथा खिड़कियाँ दक्षिण-पश्चिम की अपेक्षा, पूर्व-उत्तर में ज्यादा रखनी चाहिये, जिससे मकान में शुभ एवं सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का निर्विघ्न प्रवाह हो सके और इन ऊर्जा शक्तियों की भवन से निकासी नहीं होने पाये। कई महानुभावों का यह सोचना है कि भवन में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करने के बावजूद भी जीवन समस्याग्रस्त रहता है। निश्चित ही यह दोष वास्तु विषय का नहीं माना जा सकता है, बल्कि बिना अनुभव के अज्ञानियों के परामर्श का ही नतीजा होता है। कमी व्यक्ति के ज्ञान में संभव है, वास्तु विज्ञान में नहीं। कुशल एवं अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए भवन का निर्माण कार्य किया जाये तो, वहाँ पर रहने वालों का जीवन निरंतर खुशहाल, समृद्धिदायक और उन्नतिशील बना रहता है। वास्तु की दिशाएँ और तत्व सुधरते ही, ग्रह-दशा भी स्वयं सुधरने लगती है। वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए, यदि मकान का निर्माण एवं सामान रखने की व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जाये तो निश्चय ही वह मकान गृह स्वामी एवं वहाँ पर रहने वालों के लिये समृद्धिदायक एवं मंगलमय सिद्ध होगा। |